कोरोना से भी बचाता है विटामिन डी !
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विटामिन डी को लेकर अब एक नई जानकारी आ रही है। वैज्ञानिकों को लगता है यह कोविड-19 जैसे खतरनाक वायरस से लड़ने में भी कारगर साबित हो सकता है। इससे शरीर की प्रतिरोधक प्रणाली को मजबूती मिलती है। वैसे विटामिन डी हड्डियों, दांतों और मांसपेशियों को मजबूत करने में तो आवश्यक था ही सही।
यदि बात करें तो विटामिन डी आमतौर पर धूप से मिलने वाला विटामिन है जो हमारे शरीर में तब बनता है जब स्कीन पर सूरज की किरणें पड़ती हैं। ये शरीर को कैल्शियम और फॉस्फेट पचाने में मदद करता है जो हड्डियों, दांतों और मांसपेशियों को मजबूत करते हुए शरीर को स्वस्थ रखता है। यह बात शोध में भी साबित हो चुकी है।
विटामिन डी न हो तो क्या होता है? बॉयोमेडिकल रिसर्च से पता चलता है कि रिकेट्स, आॅस्टियोमलेशिया और आॅस्टियोपोरोसिस जैसी हड्डी की बीमारियां विटामिन डी की कमी से ही होती हैं। लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि विटामिन डी की भूमिका इससे भी अधिक है। इनका कहना है जिन लोगों में विटामिन डी की कमी होती है, ऐसे लोगों के लिए वायरस से होने वाले संक्रमण के चपेट में आने का खतरा भी अधिक होता है। वैज्ञानिकों का कहना है बीते दो दशकों में विटामिन डी को लेकर नई समझ बनी है और पता चला है कि ये हड्डियों के बाहर भी भूमिका निभाता है। विटामिन डी प्रतिरोधक प्रणाली को नियंत्रित करने में भी मदद करता है। वैज्ञानिक तो यह भी मान रहे हैं कि विटामिन डी की मामूली कमी से भी शरीर में कैंसर, हृदयरोग संबंधी बीमारियों, डायबिटीज और संक्रामक एवं सूजन संबंधी रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
अभी पक्के सबूत नहीं है..
शीर्ष वैज्ञानिक समीक्षाओं से संकेत मिलता है कि इस बात के तो पर्याप्त सबूत हैं कि विटामिन डी की कमी और शरीर पर कोविड-19 के असर में संबंध हैं लेकिन अभी इतने पक्के सबूत नहीं है कि लोगों को कोविड से बचने के लिए विटामिन डी के सप्लीमेंट लेने की सलाह दी जा सके। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि कोविड-19 महामारी ने विटामिन-डी की कमी को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। वे मानते हैं कि इस दिशा में रिसर्च सही ट्रैक पर है। अभी भले ही पक्के सबूत नहीं हैं लेकिन ट्रायल चल रहे हैं और नए सबूत मिल रहे हैं। कोविड-19 को अभी एक साल ही हुआ है इसलिए मजबूत डाटा मिलने में समय लगेगा।
सांस संबंधी बीमारी पर भी असर!
वैज्ञानिकों का कहना है हमें ये तो पक्का पता है कि विटामिन डी हमारी हड्डियों को मजबूत रखता है लेकिन अगर ये भी पता चला कि इसका सांस संबंधी बीमारियों पर भी सकारात्मक असर होता है तो ये एक अतिरिक्त फायदा होगा। इस दिशा में शोध रोचक स्थिति में तब होंगे जब हम ये स्वीकार कर लेंगे कि विटामिन डी की कमी से सांस संबंधी बीमारियां, फ्लू और सर्दी आदि भी प्रभावित होते हैं।
धूप से तो मिलता है लेकिन..
विटामिन डी मुख्य तौर पर धूप से मिलता है लेकिन इसकी मात्रा इस बात पर निर्भर करती है कि आपकी चमड़ी पर धूप कितनी तेज पड़ रही है। यह कहा जाता है कि जितना आप भूमध्य रेखा के करीब होंगे, उतना ज्यादा विटामिन डी आपको मिलेगा। यदि यह बात सही है तो भारत, पाकिस्तान व बांग्लादेश और कई अफ्रÞीकी देशों के लोग विटामिन डी की कमी से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, ऐसा नहीं होना चाहिए न। वैज्ञानिक इसकी कई वजहें बताते हैं कि कपड़ों के पहनावे भी इसपर असर डालते हैं। जैसे आपने अपने शरीर को कितना ढंका रखते हैं और क्या तेज धूप की वजह से ये लोग छांव में अधिक रहते हैं? इसके अलावा प्रदूषण भी धूप को रोक सकता है। एक और वजह चमड़ी का रंग भी हो सकता है। यूरोपियन जर्नल आॅफ क्लिनिकल न्यूट्रीशन में प्रकाशित जानकारी के मुताबिक यूरोप में 12 प्रतिशत लोगों में विटामिन डी की कमी है। लेकिन जब आप यूरोप के कई नस्ली समूहों में देखते हैं, तो विटामिन डी की कमी दो से तीन गुना तक बढ़ जाती है क्योंकि मेलानिन, प्राकृतिक धूप अवरोधक की तरह काम करता है।
यहां से लें विटामिन डी
भोजन से भी आप विटामिन डी प्राप्त कर सकते हैं। दूध उत्पाद, मछली, लाल मांस, अंडे की जर्दी भी विटामिन डी का स्रोत हो सकते हैं लेकिन अधिकतर लोगों के लिए सिर्फ भोजन से पर्याप्त विटामिन डी हासिल करना मुश्किल है। विटामिन डी में समृद्ध अधिकतर खाद्य पदार्थ ऐसे हैं जो पशुओं से मिलते हैं जबकि पौधों में विटामिन डी नहीं होता है। इसका मतलब ये है कि शाकाहारी लोग या ऐसे लोग जो महंगा मांसाहार नहीं खरीद सकते हैं, उनमें विटामिन डी की कमी होने की आशंका ज्यादा होती है।
ज्यादा विटामिन डी भी नुकसानदायक है
पब्लिक हेल्थ में काम करने वाली अधिकतर संस्थाएं रोजाना कम से कम 10 माइक्रोग्राम विटामिन-डी लेने की सलाह देती हैं लेकिन यदि सौ माइक्रोग्राम से अधिक विटामिन डी लिया जाए तो ये नुकसानदेह भी हो सकता है। लंबे समय तक अधिक मात्रा में विटामिन डी लेने से हड्डियों में कैल्शियम की मात्रा बढ़ सकती है जिसकी वजह से हड्डियां कमजोर हो सकती हैं और किडनी और दिल को भी नुकसान पहुंच सकता है।