क्या यहूदियों के साथ मिलकर ईसाईयों ने मुस्लिमों के खिलाफ जंग छेड़ दी है..?

गाजा पट्टी पर इजरायल के धमाकों का एक दृश्य

मुनीष शर्मा, विहान हिंदुस्तान न्यूज

7 अक्टूबर 2023 को इजरायल में जिस तरह से हमास के लड़ाके घुसे उसने पूरे विश्व को चौंका दिया। हमास ने कई इजरायल निवासी यहूदियों को बेदर्दी से कत्ल किया जिसके वीडियों भी बने हैं। अब इजरायल गाजा पट्टी पर पिछले ​6 दिनों से हमले कर रहा है जिसमें कई मुस्लिम जनता मारी जा रही है। आज से उसने जमीनी युद्ध शुरू कर दिया है। अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, जर्मनी व फ्रांस जैसे ईसाई बहुल देशों ने खुलकर इजरायल की मदद का ऐलान किया है। हमास ने शुक्रवार यानी आज के दिन पूरे विश्व के मुसलमानों से अपने-अपने शहर में आकर उनके समर्थन में प्रदर्शन करने की बात कही है। फ्रांस-जर्मनी में तो प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। भारत में पुलिस व इंटेलिजेंस एजेंसियां सतर्क हैं। बात यह उठती है कि क्या ईसाई-यहूदियों ने मिलकर मुस्लिमों के खिलाफ जंग छेड़ दी है?

जिस तरह से अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी व इटली जैसे पांच बड़े ईसाई देश खुलकर इजरायल के साथ आए हैं उससे ऐसा लग रहा है जैसे मुस्लिम देशों पर दबाव बनाना इनकी रणनीति है। ईसाई बहुल देश रूस का मिला-जुला बयान भी कुछ ऐसे ही संकेत दे रहा है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने चेचन्या में मुस्लिमों के खिलाफ जिस तरह से कार्रवाई की थी उसे देखकर कहा जा सकता है कि वे इस पूरी कार्रवाई में संभवत: शामिल नहीं होंगे। बात यदि ईसाई-यहूदी विरुद्ध मुस्लिमों के बीच जंग की करें तो यह तभी संभव है जब मुस्लिम देश भी खुलकर हमास के पक्ष में आए। वर्तमान में ईरान ने खुलकर हमास का साथ देने की बात कही है लेकिन सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, तुर्किये सहित अन्य बड़े मुस्लिम देश ढुलमुल नीति अपनाए हुए हैं। ये लोग फिलिस्तीन के साथ खड़े होने की बात तो कर रहे हैं लेकिन हमास के प्रति इनका रूख ईरान से अलग है। असल में हमास फिलिस्तीन को स्वतंत्र कराकर एक नया देश बनाना चाहता है जिसमें अल-अक्सा मस्जिद भी हो। यह मस्जिद जेरुशलम में है और मक्का व मदीना के बाद मुस्लिमों का यह तीसरा सबसे पवित्र स्थान है। मान्यता यह है कि पैगंबर मोहम्मद साहब यहीं से जन्नत गए थे और वापस आए। इसी तरह यह स्थान ईसाई व यहूदियों के लिए भी खास है। ईसाईयों की मान्यता है कि ईसा मसीह को यहीं फांसी दी गई थी। यहूदियों का यहां सबसे बड़ा मंदिर है। तीन बड़े धर्मों की इस स्थान को लेकर जो मान्यता है वह धर्म युद्ध का बड़ा कारण बन सकता है।

इसलिए आक्रामक हो गए ईसाई देश…

जिस तरह से अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इटली व ब्रिटेन ने इजरायल को साथ देने में जरा भी देर नहीं लगाई उसके पीछे कारण भी है। इजरायल नाटो (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) का सदस्य देश है। इस सैन्य संगठन में कई देश हैं जिसमें अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इटली व ब्रिटेन आदि शामिल है। तुर्किये भी इस संगठन में है जिसके कारण वह सीधे इजरायल पर हमला नहीं कर रहा है। वह फिलिस्तीन के लोगों की सुरक्षा की बात तो कर रहा है लेकिन खुलकर इजरायल का विरोध नहीं कर पा रहा है। बात यदि अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, इटली, स्वीडन, स्वीट्जरलैंड आदि ईसाई बहुल देशों की करें तो यहां बड़ा मुद्दा मुस्लिम बनते जा रहे हैं। इन देशों के लोगों का कहना है सीरिया, इराक, अफगानिस्तान जैसे देशों से मुस्लिम उनके देश में शरणार्थियों की तरह आए थे लेकिन वे अपने ​मुताबिक कानून-व्यवस्था चलाना चाहते हैं। वे नमाज पढ़ने सड़कों पर बैठ जाते हैं, यूनिफार्म की बात आती है तो महिलाएं हिजाब छोड़ती नहीं है, किसी भी विवाद में मुस्लिम एक होकर उनके रहवासियों पर हमला कर देते हैं या अन्य कई ऐसे मामले हैं जिसके कारण आए दिन विवाद होते रहते हैं। ये समस्याएं फ्रांस, इटली, जर्मनी, स्वीडन जैसे देशों में ज्यादा देखी जा रही है। अमेरिका में तो 9/11 अटैक के बाद से ही मुस्लिमों के प्रति अंग्रेजों का कड़ा रूख है। ईसाई यह मानते हैं कि मिडिल ईस्ट से ही आतंकवाद फैल रहा है जो पूरे विश्व को नुकसान पहुंचा रहा है। हमास, आईएसआईएस, अल कायदा, तालिबान, हिजबुल्लाह, बोको हरम जैसे आतंकी संगठन कुछ देशों पर कब्जा कर चुके हैं या कब्जे की लड़ाई कर रहे हैं। यही कारण है कि ईसाई देश यहूदियों के साथ मिलकर मुस्लिम देशों पर अपना नियंत्रण बनाना चाह रहे हैं। यदि इसके लिए उन्हें युद्ध भी लड़ना होगा तो ये लड़ लेंगे।

अभी तक शिया देश ही आगे आए…

हमास एक सुन्नी मुस्लिमों का संगठन है लेकिन उसे मदद करने में शिया बहुल देश ही ज्यादातर आगे आए हैं। ईरान ने खुलकर हमास की मदद की है जबकि सीरिया व लेबनान उसे पर्दे के पीछे रहकर मदद कर रहे हैं। वैसे इजरायल ने लेबनान के साथ सीरिया में भी हवाई हमले किए हैं ताकि हमास को मिलने वाले हथियार नष्ट किये जा सके। यह आश्चर्य की बात है कि सीरिया व लेबनान ने इजरायल पर जवाबी आक्रामण नहीं किया। हमास को उम्मीद थी कि फिलिस्तीन पर हो रहे हमलों के बाद सभी मुस्लिम देश उसके साथ आएंगे। यही कारण है कि हमास को कल वीडियो संदेश के जरिए विश्वभर के मुसलमानों से अपील करना पड़ी कि वे उसके साथ आए। हमास को विश्वभर के मुस्लिम पैसों से मदद करें और यदि ऐसा नहीं कर सकते तो अपने-अपने देश में सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन करें जिससे उन्हें यह हौंसला मिल सके कि पूरे विश्व के मुसलमान उनके साथ हैं।

ईरान के कारण चुप हैं सुन्नी मुस्लिम देश..!

यह जानकर विश्व के सभी मुस्लिमों व अन्य धर्म के लोगों को आश्चर्य हो रहा होगा कि हमास जैसे सुन्नी मुसलमानों के संगठन पर इतना घातक हमला हो रहा है और सुन्नी देश उनके साथ नहीं आ रहे हैं। इसके पीछे जो बड़ा कारण आ रहा है वह शिया बहुल देश ईरान है। ईरान पहले से ही चाह रहा था कि मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व करने वाला सऊदी अरब इजरायल के साथ संबंध न बनाए। कुछ ही समय पहले इजरायल व सऊदी अरब के बीच बैठकों का दौर शुरू हुआ और ये आपसी संबंध स्थापित कर रहे थे। सऊदी-इजरायल की दोस्ती को लेकर कुछ समय पहले ही सऊदी प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने ईरान को लेकर प्रतिक्रिया दी थी कि उसे यह दोस्ती पसंद नहीं आएगी। …और हो भी यही रहा है कि ईरान के कारण ही इतना बड़ा युद्ध हो गया जिसमें दोनों तरफ के सैकड़ों लोग मारे गए। वैसे बात यहीं तक समाप्त नहीं हो जाती क्योंकि इजरायल तो अभी भी फिलिस्तीन के बेगुनाह नागरिकों को मार रहा है जिनपर हमला नहीं होना था। ऐसे में मुस्लिम देश क्यों चुप बैठे है? संभावना जताई जा रही है कि हमास के पूरी तरह से खत्म हो जाने के बाद तुर्किये या अन्य देश मध्यस्थता के लिए आएंगे। सऊदी अरब-यूएई सहित कई देश फिलिस्तीन में फतह संगठन को मदद करते हैं जो फिलिस्तीन की आजादी के लिए काम कर रहा है। हमास पर ईरान का ही ठप्पा लगा हुआ है। यदि समझौता नहीं होता है तो संभावना है कि पूरा विश्व तीसरे विश्व युद्ध की आग में झुलस सकता है जो धर्म के नाम पर हो सकता है।

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